बनारस: बनारस के बारे में जितना लिखा जाए, जितना पढ़ा जाए और जितना महसूस किया जाए, उतना कम पर बनारस है क्या? एक शहर? एक सोच? एहसास? या एक अधूरी लिखी किताब? लेखक दिव्य प्रकाश डूबे जी अपनी किताब में लिखते हैं की जब कुछ ना समझ आए, और सब कुछ हाथ से रेत की तरह फिसल रहा हो, उस वक़्त दो दिन की छुट्टी लेकर बनारस घूमने आइए| यहाँ आकर गंगा किनारे बस दो वक़्त सुकून से बैठ जाइए| आपको समझ आएगा की आप और आपकी हर एक विपदा से बड़ी उपर वाले की सोच है| उसकी छुपी कोई योजना है| अपना जीवन शिव जी के हाथों में सौंप दीजिए और अपने शहर वापिस आ जाइए| कठिनाइयाँ थोड़ी कम लगेंगी और मन के अंदर सुकून मिलेगा| पर बनारस ही क्यूँ? बनारस एक एहसास है, जिसको महसूस तो सबने किया है, मगर आज तक कोई समझ नही पाया है | यह एहसास दिलाता है की एक संसार है जिसमे हम रहते हैं, और एक संसार है जो हमारे अंदर रहता है| की मनुष्य का जीवन और मरण सब यहीं है, सब एक रेत से शुरू होकर एक रेत में सिमट जाता है| बनारस याद दिलाता है, की शहर की भीड़, सुबह से शाम का दफ़्तर, हर शनिवार की महफ़िल, और किसी भी मोह माया से बड़ा ह...