Skip to main content

हारा कौन?


तुम पास हुए या फेल हुए, 

तुम अनजान पटरियों की रेल हुए, 

तुम जमाने से बेबाक़ हुए, 

तुम थकी आँखों में एक ख़्वाब हुए 


तुम टूट गये, 

तुम बिखर गये, 

तुम फिर भी अपनी ज़िद पे रहे, 

दुनिया से इस लड़ाई में जो तुम टीके रहे, 

तो मुझे बताओ, हारा कौन? 



समय से समय की लड़ाई में पिछड़ गये, 

तुम ग़लत दिशा के अंत तक गये, 

बेसब्र तुम अपने सपने के पीछे, 

दुनिया को आँखें दिखाए चलते गये 


गिर कर जो तुम हर बार यूँ खड़े हुए, 

तो ये बताओ, दुनिया से इस लड़ाई में, 

हारा कौन? 


तुम कहानी हुए, तुम प्रेरणा हुए, 

तुम इस सदी के सबसे ख़ास हुए, 

तुम रुके नहीं, तुम झुके नहीं, 

तुम हर आशा की आस हुए 


हाथों की लकीरें बदल कर, 

जो तुम उन चार लोगों की शामत हुए, 

यूँ हार कर भी हार ना माने,

तो ये बताओ, 

दुनिया से इस जंग में, 

हारा कौन और जीता कौन?


 

Comments

Popular posts from this blog

चाय और सपने

मैंने काफी समय से कुछ लिखा नहीं। लोग अक्सर लेखकों से ये तो पूछते हैं की उन्होंने लिखना क्यों शुरू किया पर वो जो लिखना छोड़ चुके हैं उनका क्या? खैर, आज मैं बात करना चाहता हूँ सपनो की।  अधूरे सपनो की!  सपने!  आज सुबह की चाय के साथ कई सारे सवाल मन में घूम रहे थे! बचपन में हर दूसरा इंसान मुझसे पूछता था की तुम्हारा सपना क्या है? क्या बनना है बड़े होके? तब मेरे पास जवाब था, वो जवाब बदलता रहता था पर कुछ न कुछ कहने के लिए हमेशा रहता था! कभी डॉक्टर, इंजीनियर, टीचर, आर्टिस्ट, साइंटिस्ट।  आज कोई जवाब नहीं है, और सवाल भी अब कोई कहाँ ही पूछता है? लोग पूछते हैं वो सवाल जिनसे उन्हें मतलब होता है! कहाँ रहते हो, क्या करते हो, इसको जानते हो, यही सब ?  मुझे याद नहीं पिछले कुछ समय से की किसी ने मुझसे पूछा हो की मेरा सपना क्या है? क्या करना है? क्या चाहिए?  सपने!  बहुत अजीब, दिलचस्प, और समझ से परे !  मैं सुबह की चाय के साथ अक्सर ये सवाल लेकर बैठ जाता हूँ की मुझे क्या चाहिए? पैसा? समय? या शान्ति?  कभी कभी सोचता हूँ एक किताब लिख दूँ उन सपनों पर जो पूरे तो हो सकते हैं...

Banaras :)

 बनारस: बनारस के बारे में जितना लिखा जाए, जितना पढ़ा जाए और जितना महसूस किया जाए, उतना कम  पर बनारस है क्या? एक शहर? एक सोच? एहसास?  या एक अधूरी लिखी किताब?  लेखक दिव्य प्रकाश डूबे जी अपनी किताब में लिखते हैं की जब कुछ ना समझ आए, और सब कुछ हाथ से रेत की तरह फिसल रहा हो, उस वक़्त दो दिन की छुट्टी लेकर बनारस घूमने आइए| यहाँ आकर गंगा किनारे बस दो वक़्त सुकून से बैठ जाइए| आपको समझ आएगा की आप और आपकी हर एक विपदा से बड़ी उपर वाले की सोच है| उसकी छुपी कोई योजना है| अपना जीवन शिव जी के हाथों में सौंप दीजिए और अपने शहर वापिस आ जाइए| कठिनाइयाँ थोड़ी कम लगेंगी और मन के अंदर सुकून मिलेगा| पर बनारस ही क्यूँ?  बनारस एक एहसास है, जिसको महसूस तो सबने किया है, मगर आज तक कोई समझ नही पाया है | यह एहसास दिलाता है की एक संसार है जिसमे हम रहते हैं, और एक संसार है जो हमारे अंदर रहता है| की मनुष्य का जीवन और मरण सब यहीं है, सब एक रेत से शुरू होकर एक रेत में सिमट जाता है|  बनारस याद दिलाता है, की शहर की भीड़, सुबह से शाम का दफ़्तर, हर शनिवार की महफ़िल, और किसी भी मोह माया से बड़ा ह...