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चाय और सपने


मैंने काफी समय से कुछ लिखा नहीं। लोग अक्सर लेखकों से ये तो पूछते हैं की उन्होंने लिखना क्यों शुरू किया पर वो जो लिखना छोड़ चुके हैं उनका क्या?

खैर, आज मैं बात करना चाहता हूँ सपनो की। 

अधूरे सपनो की! 

सपने! 

आज सुबह की चाय के साथ कई सारे सवाल मन में घूम रहे थे! बचपन में हर दूसरा इंसान मुझसे पूछता था की तुम्हारा सपना क्या है? क्या बनना है बड़े होके? तब मेरे पास जवाब था, वो जवाब बदलता रहता था पर कुछ न कुछ कहने के लिए हमेशा रहता था! कभी डॉक्टर, इंजीनियर, टीचर, आर्टिस्ट, साइंटिस्ट। 

आज कोई जवाब नहीं है, और सवाल भी अब कोई कहाँ ही पूछता है? लोग पूछते हैं वो सवाल जिनसे उन्हें मतलब होता है! कहाँ रहते हो, क्या करते हो, इसको जानते हो, यही सब ? 

मुझे याद नहीं पिछले कुछ समय से की किसी ने मुझसे पूछा हो की मेरा सपना क्या है? क्या करना है? क्या चाहिए? 

सपने! 

बहुत अजीब, दिलचस्प, और समझ से परे ! 

मैं सुबह की चाय के साथ अक्सर ये सवाल लेकर बैठ जाता हूँ की मुझे क्या चाहिए? पैसा? समय? या शान्ति? 

कभी कभी सोचता हूँ एक किताब लिख दूँ उन सपनों पर जो पूरे तो हो सकते हैं पर इंसान ने डर के, सोच के, सही समय के इंतज़ार में, उन सपनो को पूरा करने की कोशिश ही नहीं की!

तो कभी उन सपनो पर किताब लिखने का दिल करता है जिनको पूरा करना के लिए इंसान ने किस्मत से वो भी छीना, जो उसका कभी था ही नहीं !

सपने! 

लोग अक्सर चाय पर अपने अधूरे सपनो का जिक्र करते हैं और सुनने वाला उस वक़्त अपने सपनो के बारे में सोच रहा होता है! 

चाय आधी ख़त्म हो आती है और उन सपनो को पूरा ना कर पाने की वजह बातों में आने लगती है | अब समय निकल चुका है, क़िस्मत ही साथ नहीं देती, वक़्त ही कहाँ हैं मेरे पास; जैसे कुछ तर्क सुनने मिलते हैं! लोगों के पास जज़्बा हो या ना हो, वजह हमेशा रहती है। 

वहीं आधी कप चाय पर क़िस्से इस बात से भी शुरू होते है जहां लोग कहते है की मुझे कभी लगा ही नहीं था कि मैं कभी इस सपने को पूरा कर पाऊँगा, या “वो मेरा सपना कम, मेरी ज़िद्द ज़्यादा थी”। 

चाय और सपने, अब जब सोचने बैठता हूँ तो लगता है इन दोनों का कुछ ख़ास ही रिश्ता है। किसी के सपने चाय से शुरू होते हैं, किसी की सपनों से जंग चाय पर आकर ख़त्म हो जाती है ! 

चाय की आख़िरी घूँट बाक़ी थी। काम पर लौटने का समय हो रहा था। सपने के बारे में अब सोचने का वक्त नहीं मिलेगा जब तक शाम की चाय का समय नहीं हो जाता! पर क्या कहानी फिर वही रहेगी, या इस बार शाम की चाय की पहली घूँट से मेरी, आपकी, सपने पूरे करने कि तैयारी शुरू हो जाएगी? सवाल है, जवाब आपके पास होगा! चाय का समय होने ही वाला है, जवाब सोच लीजिएगा! 

और हाँ, सोच ही रहे हैं तो ये जवाब भी देते हुए जाइये, 

आपका सपना क्या है?




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